Did you know? 2040 तक मुंबई का 10% हिस्सा समुद्र मे डूब सकता है

पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि। यह वृद्धि मुख्यतः मानवीय गतिविधियों, विशेषकर कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण होती है। इन गैसों के वायुमंडल में जमा होने से पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ता है, जिससे जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रभाव होते हैं। और इसके कारन ही समुद्र स्तर मे काफी वृद्धि हो रही है जिससे अनुमान लगाया जा रहा है 2040 तक मुंबई का 10% हिस्सा समुद्र मे मिल जायेगा या डूब सकता है

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एंटार्कटिका में ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव अत्यंत गंभीर और नाजुक है, क्योंकि यह क्षेत्र पृथ्वी के सबसे ठंडे और बर्फीले स्थानों में से एक है। एंटार्कटिका में ग्लोबल वार्मिंग के कारण निम्नलिखित प्रमुख प्रभाव हो रहे हैं:

1. ग्लेशियरों का पिघलना और समुद्र स्तर का बढ़ना:

एंटार्कटिका का अधिकांश क्षेत्र बर्फ से ढका हुआ है, और इस बर्फ का पिघलना समुद्र स्तर में वृद्धि का कारण बन सकता है। यदि एंटार्कटिका की सारी बर्फ पिघल जाए, तो समुद्र स्तर में लगभग 58 मीटर (190 फीट) की वृद्धि हो सकती है, जो दुनिया भर के तटीय क्षेत्रों को बाढ़ में डुबो सकता है।

2. बर्फ की चादरों का पतला होना:

एंटार्कटिका की बर्फ की चादरें, विशेषकर पश्चिमी एंटार्कटिका की चादर, तेजी से पतली हो रही हैं। यह बदलाव ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा है, जिससे बर्फ का आकार कम हो रहा है और समुद्र में उसकी प्रवाह दर बढ़ रही है। इसका परिणाम समुद्र स्तर में निरंतर वृद्धि के रूप में हो सकता है।

3. ग्लेशियरों का गति से पिघलना:

पश्चिमी एंटार्कटिका और पूर्वी एंटार्कटिका में कुछ ग्लेशियर पहले से ज्यादा तेज़ी से पिघल रहे हैं। ये ग्लेशियर समुद्र में ज्यादा बर्फ प्रवाहित कर रहे हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन की गति बढ़ रही है। जैसे ही ये ग्लेशियर पिघलते हैं, समुद्र का पानी गर्म हो जाता है, और यह अधिक बर्फ के पिघलने को बढ़ावा देता है।

4. तापमान में वृद्धि:

एंटार्कटिका का औसत तापमान पिछले कुछ दशकों में बढ़ा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 1950 के बाद से एंटार्कटिका का तापमान लगभग 3°C (5.4°F) तक बढ़ चुका है। यह तापमान वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को स्पष्ट रूप से दिखाती है, और एंटार्कटिका की बर्फ और ग्लेशियरों के लिए खतरे का संकेत है।

5. जैविक प्रभाव:

एंटार्कटिका के पारिस्थितिकी तंत्र पर भी ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव पड़ा है। बर्फ पिघलने से समुद्र का पानी ताजगी खो सकता है, जो समुद्री जीवन और स्थानीय वन्यजीवों को प्रभावित कर सकता है। इस क्षेत्र में रहने वाले पेंगुइन और अन्य जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ भी इस बदलाव के कारण खतरे में पड़ सकती हैं।

6. किर्मन और ऑक्सीजन स्तर का गिरना:

बर्फ के पिघलने के कारण समुद्र के पानी का तापमान बढ़ता है, जो जलवायु और समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन का कारण बन सकता है। इस बदलाव से कुछ समुद्री प्रजातियों की जीवनशैली प्रभावित हो सकती है, जैसे कि छोटे समुद्री जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है, जो पूरे खाद्य श्रृंखला को प्रभावित कर सकते हैं।

7. समुद्र के गर्म होने से बर्फ का पिघलना:

एंटार्कटिका में समुद्र का तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है, और यह समुद्र के तल से बर्फ की चादरों के पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर रहा है। यह एक सकारात्मक प्रतिक्रिया (feedback loop) बनाता है, जिसका मतलब है कि जैसे-जैसे बर्फ पिघलती है, समुद्र और अधिक गर्म होते जाते हैं, जिससे पिघलने की प्रक्रिया और तेज हो जाती है।

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